संतोषी माता की व्रत कथा और संपूर्ण पुजन विधि आरती सहित

संतोषी माता की व्रत कथा पूजन विधि और आरती


संतोषी माता की व्रत कथा

संतोषी माता की व्रत कथा के बारे में जानकारी


संतोषी माता हिंदू धर्म में संतोष सुख और शांति और वैभव की माता के रूप में पूजी जाती है। धार्मिक मान्यताओं क्या अनुसार माता संतोषी भगवान श्री गणेश की पुत्री है। संतोष हमारे जीवन में बहुत जरूरी है। संतोष ना हो तो इंसान मानसिक और शारीरिक तौर पर बेहद कमजोर हो जाता है। संतोषी माता की व्रत कथा सुनने से हमारी  सभी  इच्छाएं पूर्ण होती है तथा संतोषी माता की व्रत कथा , पूजन तथा संपूर्ण उद्यापन करने से हमारे जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती है। संतोषी मां में संतोष दिला हमारे जीवन में खुशियों का प्रवाह करती है। माता संतोषी का व्रत और पूजन करने से धरम विवाह, संतान आदि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है। यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है। तो आइए सुनते हैं संतोषी माता की व्रत कथा, विधि, और आरती।

संतोषी माता की व्रत कथा


एक बुढ़िया थी जिसके साथ पुत्र थे। जिनमें से 6 पुत्र कमाते थे तथा एक पुत्र नहीं कमाता था। वह बुढ़िया उन छह भाईयो को अच्छी रसोई बनाकर खिलाती थी। और उस सातवे पुत्र को बच्चा हुआ खाना दे देती थी। परंतु वह भोला था, अतः मन में कुछ भी विचार नहीं करता था। (आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

एक दिन वह अपनी पत्नी से बोला "की माता को मुझसे कितना प्रेम है उसने कहा "वह तुम्हें सभी की जूठन खिलाती है फिर भी तुम ऐसा कहते हो चाहे तो तुम समय आने पर देख सकते हो"।एक दिन बोहोत बड़ा त्योहार आया।बुढ़िया ने 7 प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बनाए। सातवां लड़का यह बात जांचने के लिए सिर दुखने का बहाना करके कंबल ओढ़ के सो गया और देखने लगा, की मां ने उन्हें बहुत अच्छे आसनों पर बिठाया और 7 प्रकार के भोजन व लड्डू परोसे। वह उन्हें बड़े प्रेम से खिलाने लगी। जब सभी उठ गए तो मां ने उन सभी भाइयों की जुठन इकट्ठा की और उससे एक लड्डू बनाया। फिर वह सारे लड़के से बोली "कि बेटा रोटी खा ले। वह बोला मां में भोजन नहीं करूंगा। में तो परदेस जा रहा हूं। मा ने बोला कल जाता है तो आज ही चला जा"। वह घर से निकल गया।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

 चलते समय उसे अपनी पत्नी की याद आई। जो गौशाला में कंडे थाप रही थी। वह बोला "हम विदेश को जा रहे हैं।आएंगे कछू काल तुम रहियो संतोष सेधरम अपनो पाल"। इस पर उसकी पत्नी बोली" जाओ पिया आनंद से, हमारी सोच हटाए। राम भरोसे हम रहें, ईश्वर तुम्हें सहाय।। देउ निशानी आपनी, देख धरु मे धीर, सुधि हमारी ना बिसारियो, रखियो मन गंभीर।।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)


 इस पर वह लड़का बोला मेरे पास कुछ नहीं है यह अंगूठी है सो, ले और मुझे भी कोई अपनी निशानी दे दे। वह बोली मेरे पास क्या है। यह गोबर भरे हाथ है। यह कहकर उसने उसकी पीठ पर गोबर भरे हाथ की थाप मार दी। वह लड़का चल दिया।  ऐसा कहते हैं किसी कारण से विवाह में पत्नी पति की पीठ पर हाथ का छापा मारती है।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)


चलते समय वह दूर देश में पहुंचा। वह एक व्यापारी की दुकान में जाकर बोला भाई मुझे नौकरी पर रख लो व्यापारी को नौकर की जरूरत थी। इसलिए वह बोला कि तुम रह जाओ तुम्हारा काम देखकर तनख्वाह देंगे वह सुबह 7:00 बजे से रात के 12:00 बजे तक नौकरी करने लगा। थोड़े ही दिनों में सारा लेन-देन और हिसाब किताब करने लगा। सेठ के साथ आठ नौ कर चक्कर खाने लगे। सेठ ने उसे दो-तीन महीने में ही अपने आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया। 12 वर्ष में वह नामी सेठ बन गया। और उसका मालिक उसके भरोसे काम छोड़कर कहीं बाहर चला गया। उधर उसकी औरत को उसकी सास और जेठानी या बड़ा कष्ट देने लगी । वह उसे लकड़ी लेने के लिए जंगल में भेज दी थी। भूसे की रोटी देती थी। फूटे नारियल में पानी दे दी थी।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)
 एक दिन जब वह लकड़ी लेने जा रही थी दो रास्ते में उसे कई औरतों को व्रत करते हुए देखा। वह पूछने लगी बहनों यह किस का व्रत है, कैसे करते हैं, और इससे क्या फल मिलता है। तो एक स्त्री बोली "यह संतोषी माता का व्रत है इसके करने से मनोवांछित फल मिलता है। इसे गरीबी, मन की चिंताएं, क्लेश, रोग सभी नष्ट होते हैं। और संतान सुख, धन, प्रसन्नता, शांति ,मनपसंद वर मिलते हैं। और बाहर गए हुए पति के दर्शन मिलते हैं। उसने उस दिन उसे व्रत करने की विधि बता दी। रास्ते में उसने सभी लकड़ियां बेच दी, तथा गुड़ और चना ले लिया।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

 उसने व्रत करने की तैयारी की। उसने सामने एक मंदिर देखा तो पूछने लगी यह मंदिर किसका है। वह कहने लगी यह संतोषी माता का मंदिर है। वह मंदिर में गई और और माता के चरणों में लोटने लगी। वह दुखी होकर विनती करने लगी "मां मैं अज्ञानी हूं मैं बहुत दुखी हूं मैं तुम्हारी शरण में हूं मेरा दुख दूर करो। माता को दया आ गई। यह शुक्रवार को उसके पति का पत्र आया। और अगले शुक्रवार को पति का भेजा हुआ धन मिला। अब तो जेठ जेठानी और सास नाक सी कोड कर कहने लगे कि अब यह बुलाने पर भी नहीं बोलेगी।
(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

वह बोली पत्थर और धन आ गए तो सभी को अच्छा है उसकी आंखों में आंसू आ गए। वह मंदिर में गई और माता के चरणों में गिरकर बोली "मां मैंने तुमसे पैसा कब मांगा था। मुझे तो अपना सुहाग चाहिए। मैं तो अपने स्वामी के दर्शन और सेवा मांगती हूं"।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

तब माता ने खुश होकर कहा "जा बेटी तेरा पति आवेला"। वह बड़ी प्रसन्नता से गर गई और घर का कामकाज करने लगी।  उधर संतोषी माता ने उसके पति को स्वप्न में घर जाने और पत्नी की याद दिलाई। उसने कहा मां मैं कैसे जाऊं परदेस की बात है लेन-देन का कोई हिसाब नहीं है। मैंने कहा मेरी बात मान सवेरे नहा धोकर मेरा नाम लेकर घी का दीपक जलाकर दंडवत करके दुकान पर बैठना देखते-देखते सारा लेन-देन साफ हो जाएगा। धन का ढेर लग जाएगा।
सवेरे उसने अपनी सपने की बात सभी से कहीं तो सब दिल्लगी उड़ाने लगे। वह कहने लगे कहीं सपने भी सत्य होते हैं? पर एक बुड्ढे ने कहा भाई जैसे माता ने कहा है वैसे करने में क्या डर है। उसने माता को दंडवत करके घी का दीपक जलाया।
और दुकान पर जाकर बैठ गया। थोड़ी ही देर में सारा लेन-देन साफ हो गया। सारा माल बिक गया और धन का ढेर लग गया वो खुश हुआ। और घर के लिए गहने और सामान वगैरह खरीदने लगा। वह जल्दी घर को रवाना हो गया। उधर बिचारी उसकी पत्नी रोज लकड़िया लेने जाती। और रोज संतोषी माता की सेवा करती थी।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)
उसने माता से पूछा हे मा यह धूल कैसे उड़ रही है। माता ने कहा तेरा पति आ रहा है। तू लकड़ियों के तीन बोझ बना ले। एक नदी के किनारे रख, एक यहां रख, और तीसरा यह अपने सिर पर रख ले। तेरे पति के दिल में उस लकड़ी के गड्ढे को देखकर मोह पैदा होगा। जब वह वहां रुकेगा और नाश्ता पानी करके घर आएगा तब तो आवाज लगाना सासूजी लकड़ियों का गट्ठर लो भूसे की रोटी दो और नारियल के खोपड़े में पानी दो आज मेहमान कौन आया है।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

 इसने मां के चरण छुए और कहे अनुसार सारा कार्य किया। वह तीसरा गट्ठर देखकर घर गई और चौक में डाल कर कहने लगी "सासूजी लकड़ियों का गट्ठर लो भूसे की रोटी दो नारियल के कपड़े में पानी दो आज मेहमान कौन आया है। यह सुनकर सास बाहर आकर कपट प्रवचनों से उसके दी हुए कष्टों को बुलाने के लिए कहने लगी "बेटी तेरा पति आया है मीठा भात और भोजन कर, महंगे कपड़े पहन। अपनी मां के एसे वचन सुनकर उसका पति बाहर आया और अपनी पत्नी के हाथ में अंगूठी देखकर व्याकुल हो उठा। उसने पूछा यह कौन है?  मां ने कहा यह तेरी बहू है। आज 12 बरस हो गए यह दिन भर घूमती फिरती है।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)
कामकाज करती नहीं है। तुझे देखकर नखरे करती है। वह बोला ठीक है मैंने तुझे और इसे देख लिया है। अब मुझे दूसरे घर की चाबी दे दो, मैं उसमें रहूंगा। मां ने कहा ठीक है जैसी तेरी मर्जी और उससे चाबी का गुच्छा पटक दिया। उसने अपना सामान तीसरी मंजिल के ऊपर के कमरे में रख दिया।

 1 दिन में वह राजा के समान ठाटबाट वाले बन गए इतने में अगला शुक्रवार आया। बहू ने अपने पति से कहा मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। वह बोला बहुत अच्छा खुशी से कर ले।वह जल्दी ही उद्यापन की तैयारी करने लगी उसने जेठ के लड़कों को जीमने के लिए कहा उन्होंने मान लिया।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

 पीछे से जेठानी उन्हें अपने बच्चों को सिखा दिया तुम खटाई मांगना जिससे उसका उद्यापन पूरा ना हो। लड़कों ने जिमने पर खटाई मांगी।  बहू कहने लगे भाई खटाई किसी को नहीं दी जाएगी यह तो संतोषी माता का प्रसाद है। लड़के खड़े हो गए और बोले पैसा लाओ वह बोली कुछ ना समझ सके उनका क्या भेद है उसने पैसे दे दिए और वे इमली की खटाई मंगा कर खाने लगे। इस पर संतोषी माता ने उन पर क्रोध किया। राजा उसके पति को पकड़ के ले गए।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

 वह बिचारी बहुत बहुत दुखी हुई और रोती हुई माताजी के मंदिर को गई और उनके चरणों में गिर कर कहने लगी। है माता यह क्या किया हंसा कर अब तो मुझे क्यों रुलाने लगी। माता बोली पुत्री मुझे दुख है कि तुमने अभीमान करके मेरा व्रत तोड़ा है। और इतनी जल्दी सब बातें भुला दी। वह कहने लगी माता मेरा कोई अपराध नहीं है, मुझे तो लड़कों ने भूल में छल दिया। मैंने भूल में ही उन्हें पैसे दे दिए मां मुझे क्षमा करो। मैं दुबारा तुम्हारा उद्यापन करुंगी माता बोली जा तेरा पति से रास्ते में आता हुआ ही मिलेगा।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)
 उसे रास्ते में उसका पति मिला। उसके पूछने पर वह बोला राजा ने मुझे बुलाया था। मैं उससे मिलने गया था वे फिर घर चले गए कुछ ही दिन बाद फिर शुक्रवार आया। वह दुबारा पति की आज्ञा से उद्यापन करने लगी। उसने फिर जेठ के लड़कों को बुलावा दिया। जेठानी ने फिर वही बात सिखा दी। लड़के भोजन के बाद पर खटाई मांगने लगे उसने कहा कटाई कुछ भी नहीं मिलेगी आना हो तो आओ यह कहकर वह ब्राह्मणों के लड़कों को लाकर भोजन कराने लगी। उसके बाद उसने उसने उन्हें दक्षिणा दी संतोषी माता उस पर बेहद खुश हुई ।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

माता की कृपा से नौवें मास में उसके एक चंद्रमा के समान सुंदर पुत्र हुआ। अपने पुत्र को लेकर वे रोजाना मंदिर जाने लगी। 1 दिन संतोषी माता ने सोचा कि यह रोज यहां आती है आज  में इसके घर चलूंगी। इसका सासरा देखने यह सोचकर उसने एक भयानक रूप बनाया गुड़ व चने से सना मुख ऊपर को सूंड के समान होठ जिन पर मक्खियां भिन्न-भिन्न आ रही थी।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

 इसी सूरत में वह उसके घर गई।डेली में पांव रखते ही उसकी सास बोली देखो कोई डाकिन आ रही है इसे भगाओ। नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भागकर खिड़की बंद करने लगे साथ में लड़के की बहू खिड़की से देख रही थी वह वहीं से चिल्लाने लगी आज मेरी माता मेरे ही घराई है। यह कहकर उसने बच्चे को दूध पीने से हटाया, इतने में सास बोली पगली किसे देखकर उतावली हुई है जो अपने बच्चे को ही पटक दिया है। इतने में संतोषी माता के प्रताप से वहां लड़के ही लड़के नजर आने लगे।बहु बोली "सासूजी मैं जिस का व्रत करती हूं यह तो वही संतोषी माता है यह कहकर उसने सारी खिड़कियां खोल दी।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)
 सब ने संतोषी माता के चरण पकड़ लिए और विनती करके कहने लगी हे माता हम मूर्ख हैं अज्ञानी हैं पापिनी है तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते तुम्हारा व्रत भंग कर हमने बहुत बड़ा अपराध किया है हे जगत माता आप हमारा अपराध क्षमा करें इस पर माता खुश हुई जिस प्रकार संतोषी माता ने बहु को फल दिया वैसा ही फल सब माताओं को दें। तो आइए, संतोषी माता की व्रत कथा सुनने के बाद अब हम संतोषी माता की पूजन विधि सुनते हैं।(आप पढ़ रहे है संतोषी माता की व्रत कथा)

संतोषी माता व्रत कथा की पूजन विधि


सुख सौभाग्य की कामना से माता संतोषी की 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है। सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई इत्यादि पूर्ण कर ले। स्नानादि के बाद घर में किसी सुंदर व पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। माता संतोषी के सम्मुख एक कलश जल भरकर रखें कलश के ऊपर है कटोरा भर के गुण व चना रखें।
(आप पढ़ रहे हैं संतोषी माता व्रत कथा की पूजन विधि)

 माता के समक्ष एक घी का दीपक जलाएं। माता को फूल सुगंधित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें। माता संतोषी को गुड व चने का भोग लगाएं ।संतोषी माता की जय बोल कर माता की कथा आरंभ करें। व्रत करने वाले को श्रद्धा और प्रेम से व्रत करना चाहिए। और हां एक अवश्य बात इस दिन व्रत करने वाली स्त्री पुरुष को ना ही खट्टी चीजें हाथ लगानी चाहिए। और ना ही खानी चाहिए। (आप पढ़ रहे हैं संतोषी माता व्रत कथा की पूजन विधि)

संतोषी माता की आरती

ओम जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।
 अपने सेवक जन की, अपने सेवक जन की, सुख संपति दाता।। 
ओम जय संतोषी माता ......

ओम जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता। अपने सेवक जन की, सुख संपति दाता ।।
ओम जय संतोषी माता........

सुंदर चीर सुनहरी, मां धरण कीन्हों।
 हीरा पन्ना दमके, हीरा पन्ना दमके, तन शृंगार किनहो।।
 ओम जय संतोषी माता............

 ओम जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।। अपने सेवक जन की, सुख संपति दाता।। 
ओम जय संतोषी माता.......
 गेरू लाल छटा छबि, बदन कमल सोहे ।
मंद हसत करुणामई, त्रिभुवन मन मोहे।।
 ओम जय संतोषी माता.......
 ओम जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन की, अपने सेवक जन की सुख संपति दाता।। 
ओम जय संतोषी माता........
 घोड़ा और चना परम प्रिय, तामे संतोष कियो ।
 संतोषी कहलाई, भक्तों को वैभव दियो ।।
ओम जय संतोषी माता.......
 ओम जय संतोषी माता मैया जय संतोषी माता।
 अपने सेवक जन की अपने सेवक जन की सुख संपति दाता।।
 ओम जय संतोषी माता .......
शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही।
 भक्त मंडली आए तथा सुन्नत मोहि ।।
ओम जय संतोषी माता ......
ओम जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।
अपने सेवक जन की अपने सेवक जन की सुख संपति दाता।।
 ओम जय संतोषी माता....
 मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई।
 बिनय अरे हम सेवक, चरनन सिर नाई ।।
ओम जय संतोषी माता........
 ओम जय संतोषी माता मैया जय संतोषी माता।
 अपने सेवक जन की, सुख संपति दाता।।
 ओम जय संतोषी माता......
 भक्ति भाव माई पूजा, अंगीकृत कीजै ।
जो मन बसाई, हमारे जो मन बसे हमारे इच्छित फल दीजिए।।
 ओम जय संतोषी माता.......
 ओम जय संतोषी माता मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जान की,सुख संपति दाता ।।
ओम जय संतोषी माता ......
दुखी दर्द भरी रोगी संकट मुक्त किए, तूने संकट मुक्त किए। 
बहु धन धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए।।
 ओम जय संतोषी माता.......
 ओम जय संतोषी माता मैया जय संतोषी माता अपने सेवक जन की सुख संपति दाता ओम जय संतोषी माता।
 ध्यान धरे जन तेरो, मन वांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर, पूजा कथा श्रवण कर घर आनंद आयो।। 
ओम जय संतोषी माता.......
 ओम जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता। अपने सेवक जन की अपने सेवक जन की सुख संपति दाता।।ओम जय संतोषी माता।
 शरण गहे की लज्जा, रखियो जगदंबे ।
संकट तू ही निवारे संकट तू ही निवारे दयामई अंबे।।
 ओम जय संतोषी माता........
 ओम जय संतोषी माता मैया जय संतोषी माता ।अपने सेवक जन की अपने सेवक जन की सुख संपति दाता।।
 मैया जय संतोषी माता
संतोषी माता की आरती, जो कोई जन गावे।
 रिद्धि सिद्धि सुख संपति, जी भर के पावे।।
ओम जय संतोषी माता ........
ओम जय संतोषी माता मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन की सुख संपति दाता ओम जय संतोषी माता।


दोस्तों आपने संतोषी माता की व्रत कथा का पूरा आनंद लिया और हमें उम्मीद है कि हमारी पूजन विधि और संतोषी माता की आरती से आपको बहुत आनंद आया होगा हम आशा करते हैं कि मां संतोषी आपको सुख वैभव धन धन संतान सभी भौतिक संसाधनों से पूरित करें यदि पसंद आया हो तो कमेंट बॉक्स में जय संतोषी माता जरूर लिखें।

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